लाईन ओफ कन्ट्रोल पर पूंच से आगे Krishna Ghati सेक्टरमें जब हमारी मुलाकात भारतीय सेना द्वारा स्थापित गणपति बापा से हुई.. जीवनभर याद रहेनेवाले प्रवास की कहानी…
गायत्री वाजपेयी
(यहां दी गयी सभी तसवीरे प्रतिकात्मक हे, Krishna Ghati की तसवीरे सुरक्षा के कारणोसर नहीं दी जा शकती. हालाकी सभी तसवीरे पूंच-रजौरी की ही है.)
हिमालय पर्वत की सबसे बडी पर्वतशृंखला कहलानेवाली पीर पंजाल पर्वतशृंखला. जम्मू-काश्मीर और हिमाचल प्रदेश मे इस शृंखला का विस्तार है और इससे सटीक ही पाकिस्तान ने कब्जे किए हुए काश्मीर का प्रदेश है. इसीलिए यह प्रदेश भारत के संवेदनशील प्रदेशो मे से एक समझा जाता है. पीरपंजाल की पर्वतशृंखला मे क्रिष्ना घाटी को जम्मू के पूंछ और रजौरी जिलों से जोडनेवाली एक और घाटी है जिसे क्रिष्ना घाटी कहा जाता है. भारत के फॉरवर्ड पोस्ट का यह इलाका फिलहाल पुरी तरह सेना के नियंत्रण मे है और इस प्रदेश की रक्षा की जिम्मेदारी सेना के मराठा लाइट इन्फ्रंट्री ब्रिगेड को सौंपी गई है.
यह सब याद करने का कारण है, पिछले साल सप्टेंबर माह मे एक कोर्स के सिलसिले मे इस घाटी मे स्थित सेना के कुछ ठिकाणो को भेट देने का अवसर मुझे प्राप्त हुआ था. वो दिन (सितम्बर 2019) गणेश उत्सव के थे. उस वक्त जम्मू- काश्मीटर से कलम 370 को रद्द किए बस एक महिना गुजरा था ऐसे वक्त मे इस जगह को भेंट देना अपने आप मे एक विशेष मौका था. पर इस भेंट की सबसे विशेष बात थी की, घाटी के उस दुर्गम इलाके मे भी सेना के जवानो ने बेहद सादगी से मगर उतने शानदार तरीके से गणपती जी की प्रतिष्ठापना कर, उनका उत्सव मनाया था. यही कारण है इस साल गणेशोत्सव के चलते, पिछले साल घाटी मे अनुभव किए उस गणेशोत्सव की यादे फिरसे ताजा हुई.
पुणे से इस कोर्स के लिए मै और लोकसत्ता अखबार की रिपोर्टर तथा मेरी दोस्त भक्ती बिसुरे का चुनाव हुआ था. हमारे अलावा भारतभर से आए हम करीब 30 पत्रकार इस कोर्स मे शामील थे. जम्मू मे जिस जगह हम रह रहे थे वहा से क्रिष्ना घाटी करीबन तीन से चार घंटो की दुरी पर थी. सुबह आठ बजे हम पाच अलग गाडीयो मे घाटी की ओर निकले. हमारे गाडीयो के आगे दो और पीछे एक ऐसी तीन सेना की गाडीया थी. जम्मू की रजौरी जिले से गुजरते हुए हम घाटी की और चल पढे.
गर्द झाडीयो से गुजरता हुआ पहाडी रास्ता, बिल्कुल ही निर्मनुष्य इलाका, और घाटी का सुंदर नजारा कुछ पल के लिए मुझे सह्याद्री पर्वतशृंखला की याद दिला रहा था. पर घाटी मे फैला हुआ सन्नाटा और खालीपण वहा की स्थिती की गंभीरता महसूस करवा रहा था.
जंगल का वो “खुफिया’ रास्ता पार कर हम दोपहर करीबन दो नजे सेना के एक बेस पर पहुंचे. एक किलेसमान इस ठिकाणे के अंदर प्रवेश करने के लिए हमारा सिक्युारिटी चेक किया गया, बावजूद इसके की हम खुद्द सेना के काफिले के साथ आए थे. यहा मराठा लाइ यानी मराठा लाइट इन्फ्रंट्री ब्रिगेड प्रदेश की निगरानी के लिए तैनात की गयी है. हमारे वहा पहुंचते ही सेना के तुकडी का मुखिया जिसे कमांडिंग ऑफिसर कहा जाता है, वह हमारे स्वागत के लिए आए. उन्होने हमारा स्वागत किया और कुछ सुचनाए दी जिसके बाद हम उस ठिकाण को भेट देने के लिए आगे बढे. करीबन 50 सीढीया चढने के बाद बायी और थोडी दुरी पर एक छोटासा कमरा था. इस कमरे मे कई सारे रंगों की कागद की मालाए, लाइटिंग इन सबसे एक सुंदर सजावट की गई थी और इस सजावट के बीचोबीच बाप्पा की मुर्ती विराजमान थी.
गणेशोत्सव का पर्व होने के बावजूद भी इस साल बाप्पा के दर्शन नही कर पाए, इस बात को लेकर जो गम था वो घाटी मे बाप्पा के दर्शन के साथ पुरी तरह से गायबसा हो गया. एक अद्भुत समाधान का आभास मुझे और भक्ती उस वक्त हुआ था. एक और कृष्णा घाटी का वो महत्वपूर्ण इलाका देखने का अवसर और यहा पर अपने प्रिय बाप्पा के अचानकसे हुए दर्शन, ये एक अनोखा संयोग था!
गणेशजी के दर्शन करने के बाद हम उस जगह को देखने के लिए आगे बढे, थोडी हि दुरी पर एक हेलिपॅड था. यह जगह ऐसी थी जहा ठीक सामने वाली पहाडीपर बिल्कुल 90 डिग़्री के कोन मे पाकिस्तानी सेना की पोस्ट थी. यहा से दोने देशो के सैनिक बहौतही सहजता से एक दुसरे की आंख से आंख मिला सकते है. घाटी मे ऐसी कई सारी जगह है जहा दोने सेना के सैनिक एक दुसरे बहुत ही कम और सीधे अंतर पर है, यह जानकारी वहा के सेना अफसर ने बतायी थी. उसके बाद हम लोग सेना के सर्वेलन्स रूम मे गए. यहा हमे सेना के अफसर ने घाटी मे सेना के काम के बारे जानकारी दी. इस पुरे इलाके मे सीसीटीवी का जाल फैला है. दुश्मान के इलाके के करीब माइन बिछाये गये है.
यहा पहाडी पर दोनो देशो के सेना के छोटे छोटे बंकर है. तोफ, होवीत्झर, स्नाइपर्स, घातक तुकडी तथा रात दिन सीमापर तैनात किए जवान ऐसी सर्वसमावेशक व्यवस्था सेना की और से की गयी है. इसी बात से यह प्रदेश कितना महत्वपूर्ण है इस बात का पता चलता है.
पाकिस्तानी सेना की और से घाटी पर कब्जा जमाने की कई बार कोशिश की गयी. फिर वो 1965 की जंग हो, 1971 की या कारगिल जंग, हरबार दुश्म न सेना ने इसपर कब्जा पाने के लिए जोरदार कोशिश की है, पर भारत के सेना ने उनकी हर कोशिशो के नाकामयाब करते हुए खाली हाथ लौटने पर मजबूर किया है. यही वजह है के क्रिष्ना घाटीपर कब्जा करना यह पाकिस्तानी सेना के लिए एक इगो इश्यु् बन चुका है. जिसके चलते आज भी यहा घुसखोरी, सीझफायर वायलेशन जैसी घटनाए लगातार होती रहती है.
कुलमिलाकर क्रिष्ना घाटी की भेट यह मेरे लिए एक अविस्मरणीय अनुभव था. सेना की जो मराठा तुकडी इस घाटी की रक्षा कर रही उनमे सातारा, चंद्रपूर, बेळगाव के बहुतसारे नौजवान है. देशसेवा करते हुए विघ्नहर्ता हमेशा हमारे साथ है. यह भावना उनकी बातो से महसूस हुई और आज भी अनजाने मे हमारे दिल से बाप्पा उनकी सदैव रक्षा करे ऐसी प्रार्थना की जाती है. इस साल के गणेशोत्सव के चलते उस साल के भेट की यादे फिरसे ताजा हुई.