डिफेन्स करस्पोन्डन्ट कोर्स – संरक्षण की समझ देनेवाली शिक्षा

डिफेन्स करस्पोन्डन्ट कोर्स के एक महिने के सफर दरमियान हमने भारतीय नौसेना, वायुसेना, भूसेना ओर रक्षा मंत्रालय की मुलाकात ली. उससे हमे क्या मिला?

कोर्स पुरा होने पर ये सर्टिफिकेट मिलता है, जो की बहुत ही बडी बात हे.

भारत का रक्षा मंत्रालय हर साल डिफेन्स करस्पोन्डन्ट कोर्स-डीसीसी (रक्षा संवाददाता प्रशिक्षण)का आयोजन करता हे. ये प्रशिक्षण पत्रकारो के लीये ही होता हे. पुरे देशसे 35 वर्ष से कम आयु के पत्रकारो का चयन करके उसे पुरा एक महिना भारतके संरक्षण मंत्रालय, उनकी तीन मुख्य शाखाए एवं संरक्षण कूटनिति सहित विविध विषयो से वाकेफ किया जाता हे.

ईस साल कोर्स के लिये पुरे देशसे 32 पत्रकारो का चयन हुआ था. गुजरात से कुल चार पत्रकार पसंद हुए थे, जिसमे में भी सम्मिलित था (बाकी तीन, 1. अर्पण कायदावाला-झी मीडिया, 2. दीपक मकवाना-जीटीपीएल, 3. नंदन दवे-पीटीआई). ईस कोर्स का मूल उद्देश संरक्षण में ऋची रखनेवाले, संरक्षण पर लीखनेवाले पत्रकारो को देशनी रक्षा प्रणाली से अच्छी तरह वाकिफ कराना हे.
रक्षा मंत्रालय ओर उनका काम बडा ही अलग हे. वे ओर मंत्रालयो जैसा नहीं हे. ईस लीये सन 1967 से रक्षा मंत्रालय डीसीसी के जरिये पत्रकारो को तालिमबद्ध करता आया है.

वाईस एडमिरल आर.वी.पंडित एवं नौका अफसरो के साथ नेवल डोकयार्ड के हेडकवाटर में.


जो पत्रकार रक्षा मंत्रालय या ऊनकी तीनो पांखो के बारेमें लीखते हे वो शिक्षित हो ये बात बहुत मायने रखती हे. क्युंकी रक्षा मंत्रालय के समाचार सिर्फ समाचार या ईन्फर्मेनश नहीं हे. उसमें देश हित झुडा हुआ हे. उसमें स्ट्रेटेजी भी हे. उसमे बहुत सी ऐसी बाते हे जो पहेली नजर में दीखती नहीं हे. ईसी लीये जो पत्रकार संरक्षण विषय पर लीख रहे हे ओर आगे भी लीखने के ईच्छुक हे उनके लीये ये तालीम बहुत जरृरी हे.

ईस एक महिने के दोरान हमे वो सब देखने, जानने, अनुभव करने को मीला जो पता करने का डीसीसी के सिवा कोई ओर तरीका नहीं हे. बहुत सी गोपनिय बाते भी बताई गई, जो जाहीर सी बात हे हम यहां कहेना नहीं चाहेंगे. पर पुरे कोर्स का परिचय मील जाय ऐसी कुछ बाते…

कोर्स चार भागमें विभाजित थाय, ईन्डियन नौसेना, ईन्डियन एरफोर्स, ईन्डियन आर्मी एवं खुद संरक्षण मंत्रालय.

25 अगस्त को हमारी सफर नौसेना के साथ मुंबई में शुरु हुई. नौका ईतिहास के बारेमें थोडा-बहूत पढा था. खास कर के प्रथम ओर द्वितिय विश्वयुद्ध के बारे में जो की ज्यादातर नेवल पावर के दम पर ही खेले गये छे. जर्मन यु-बोट्स (सबमरिन जो की यु आकार की होने की वझह से ये नाम मिला)ने ब्रिटेन सहित सभी देशो की नाक में दम कर रखा था.
वो सब तो ठीक था, पर ईन्डियन नेवी क्या कर रहा है?

आईएनएस ब्रह्मपुत्र में सवार होने के बाद दीख रहा मुंबई का स्काई लाईन

INDIAN NAVY

हमे खास पता नहीं था, क्युं के 1971 के युद्ध के बाद नेवी का सक्रीय इस्तमाल होने का कोई प्रसंग ही नहीं आया हे. हमे होटेल ताज से बस में बीठा कर नेवल डोकयार्ड में ले जाया गया. वहं पर दिवार पर लीखा था, स्थापना वर्ष – 1735. ये देख कर ही मेरे जेसे ईतिहास में ऋची रखने वाले के रोमटे खडे हो जाना सहज बात थी.. डोक यार्डमें नेवल मेरिटाईम वोरफेर सेन्टर हे. यही हमारा एक सप्ताह निकलने वाला था.
सेन्टर के डिरेक्टर थे कोमोडोर श्रीकांत केसनुर. उन्होने हमारा स्वागत कीया. पहेले दिन तो वाईस एडमिरल आर.वी.पंडित भी आये ओर सबको नेवी की नयी दुनियामें प्रवेश करवाया. बाद में वोरफेर सेन्टरमें हमारे रोजिंदा क्लास होते रहे.
एक सप्ताह को दोरान हमने बहुत सारे विषय शीखे. जैसे की..
– नोकादल का ईतिहास,
– मेरिटाईम डोमेईन,
– महासागर क्या हे,
– महासागर में सफर करने की चुनौतिया क्या हे,
-पुरे हिन्द महासागरमे आफ्रिका से लेकर ओस्ट्रेलिया तक कैसे भारतीय नौकादल सबका रखवाला है,
-सोमालियन चांचीया कैसे काम करते हे,
– बांग्लादेश ओर सोमाली चांयीयागीरीमें क्या अंतर हे
– नेवी कैसे दुसरे देशो के साथे कुटनैतिक रिस्ता बनाये रखती हे
– सबमरिन ओपरेशन कैसे काम करते हे
– नेवी के कितने विभाग है, रेन्क क्या है
– मानवसर्जित या कुदरती आफत के वक्त नेवी कैसे मदद करता हे
ईस तरह तो लिस्ट बहुत लंबी बनेगी.. पर कुल मिलाकर हम ईतना समजे की यहां आने से पहेले हम नेवी के बारेमें सिर्फ 5-10 प्रतिशत जानते थै, उस जानकारीमें बडा ईझाफा हुआ.

युद्धजहाज की समजावट एवं सफर

हमने एक दिन पुरा युद्धपोत ‘आईएनएस ब्रह्मपुत्र’ पर गुजारा, सबमरिन ‘आईएनएस सिंधुरत्न’ की मुलाकात भी ली ओर, कोस्ट गार्ड का शीप ‘आईसीजीएस संग्राम’ का सफर भी कीया. ईन सब का अनुभव शब्दोमें व्यक्त करने में असक्षम हुं.

पर उससे भी बडी बात थी नेवी की महेमानगती. हमे पता नहीं था की नेवी के अफसर हमारे साथ कैसा बर्ताव करेंगे. हमे कैसे रखेंगे. पर ये कहेना पडेगा की हमे अपने घर से भी अच्छे तरीके से कोमोडोर केसनुर की टीमने रखा.
खास तोर पर रोज हम सब को संभालने का काम कोमोडोर ओक्टा, कोमोडोर पुरषोत्तम वर्मा, कोमोडोर विनय कालिया, कमान्डर श्रवण कपिला, कमान्डर दिग्विजय सोढा, कमान्डर दोराईबाबु, कमान्कर मेहुल कार्निक, लेफ्टनन्ट कमान्डर साहिल झून, बस में हमारे साथ रहेने वाले नौका जवान,  ओर बहुत सारे अफसरोने हमारा अपने परिवार के सदस्य की तरह खयाल रखा.

देखते ही देखते सप्ताह खतम हो गया. हम नीकल पडे चंदिगढ, जहां पर ईन्डियन एर फोर्स हमारा ईन्तजार कर रहा था.

INDIAN AIR FORCE

  चंदिगढ में एरफोर्स का ट्रान्सपोर्ट बेझ हे. ज्यादातर लोग एरफोर्स मतलब फाईटर जेट समजते हे. वो समज गलत नहीं हे, पर पूरी भी नहीं हे. एरफोर्स के चार हिस्से हे, फाईटर जेट, ट्रान्सपोर्ट विमान, हेलिकोप्टर एवं एरोबेटिक्स टीम.

चंदिगढ के एर फोर्स बेझ में एर कोमोडोर तेजबिर सिंहने हमारा स्वागत किया. एर फोर्स का ईतिहास, ट्रान्सपोर्ट विमान, ट्रान्सपोर्ट हेलिकोप्टर, उसका मेन्टेनन्स, पार्किंग एरिया, रन-वे, मिसाईल की तैनाती, एर ट्राफिक कन्ट्रोल.. सभी पहेलुओ का परिचय दो दिन में मीला.

चंदीगढ-अंबाला में एर फोर्स की सफर

चंदिगढ से 50 किलोमीटर दूरी पर अंबाला स्थित हे. अंबाला मे एर फोर्स का फाईटर बेझ हे. यहां पर मिग-21 बाईसन, जेगुआर जैसे फाईटर जेट की स्कवोड्रन रखी गई हे. आगामी साल शायद रफाल भी यहां पर तैनात होगे.
यहां पर पता चला की कैसे युद्ध की स्थिति में 5-7 मिनिटमें ही फाईटर विमान युद्ध के लीये बंकर से निकल कर आकाश में हजारो फीट की ऊंचाईया पर पहोंच जाता है. अंबाला का स्टेशन 100 साल पुराना हे, क्युं की 1919मां उसकी स्थापना हुई थी.

INDIAN ARMY

आगामी सफर थी जम्मु की जिसके लीये सभी बहुत उत्सुक थे. क्योंकी धारा-370 हटाने के बाद के नये जम्मु-काश्मीर में हम जा रहे थे. जीस के बारे में बहुत सुनाई पड रहा हे वो जम्मु-काश्मीर कैसा होगा ये सवाल हम जैसे पहेली बार जाने वाले सब के मनमें था. चंदिगढ से बस में सवार हो कर हम जम्मु पहोंचे.

धारा 370 के बाद के जम्मु में आपका स्वागत हे.

बहुत सारे सुरक्षा जवान तैनात थे पर फीर भी स्थिति सामान्य थी. सामान्य मतलब की हम लोक आराम से होटेल के बहार नीकल कर जम्मु की गलियो में घूम शकते थे. हमारी होटेल जम्मु के ऐतिहासिक रघुनाथ मंदिर के पास थी. उसे देखने में भी मुजे बडी दिलचश्पी थी. क्युं की उसके नीचे पुरा बंकर हे, जीसमे हिन्दु संस्कृति की धरोहर जैसी हस्तप्रत रखी हुई थी. एब तो बंकर खाली ओर बंध हे.

ईन्डियन आर्मी के साथ हमारी सफर शरृ हुई नगरोटा सैनिक स्कूल से. संरक्षण की तीनो पांखो मे आर्मी (भूमिदल) सबसे बडी फोज हे. उसका बडकपन, बडा जमेला, जगह जगह स्टेशन.. सब कुछ हर जगह दीखने को मीलने लगा.

चलो दीलदार चलो… 4.5 किलोग्राम का जेकेट, 1.5 किलोग्राम का टोपा पहेन के एलओसी के पार चलो

जम्मु-काश्मीर राज्य में जम्मु ईलाका अलग हे, काश्मीर अलग हे. हम जम्मु मे थे. पुरा जम्मु ईलाका आर्मी की 16मी कोर देखता है. वो कैसे काम करते हे ये पता चला. 9 दिनो के सफर में हमने..
– ‘लाईन ओफ कन्ट्रोल’ क्या हे वो समजा ओर देखा. ‘पाकिस्तान कबजे का काश्मीर (पीओके)’ देखा.
– पाकिसानी पोस्ट देखी.
– एलओसी पर रात तो कैसे काम होता हे वो देखा.

एलओसी के पास का सौंंदर्य


– घूसपैठीयो के कैसे रोका जाता हे, उसके लीये क्या क्या ईन्तझामाता है, कैसे सर्वेलन्स होता है, कोन से हथियार ईस्तमाल कीये जाते हे वो देखा.
– मेईन बेटल टेन्क भी देखी ओर उस पर सवारी भी की.
– पुरे जम्मु-काश्मीरमें आर्मी का काम डबल रोल जेसा हे, सुरक्षा तो करते ही हे, साथ में सिविल एडमिनिस्ट्रेशन का काम भी करते हे. क्युं की बहुत सारे ईलाके ऐसे हे जहां सरकारी सुविधाए पहोंचानेमें बहुत मुश्केली होती हे. आर्मी ऐसे ईलाकोमें आरोग्य, शिक्षा, ओर सभी प्राथमिक सुविधाए उपलब्ध करवाती है. रजौरीमें तो आर्मी की जो स्कूल हे वो पूरे ईलाके में सर्वोत्तम हे. उसे देख कर ऐसा लगा की काश हमारे बच्चे भी ईस में पढ शके.

जम्मु का ऐतिहासिक रघुनाथ मंदिर

– हमने पेट्रोलिंग भी कीया, बुलेक प्रूफ जेकेट पहेन के ओर हथियार उठा के चले भी सही, ओर महेसूस कीया की आर्मी के जवान कीन मुश्कीलो से गुजरते हे. हम उनकी कल्पना भी नहीं कर शकते ऐसे हालात में ईन्डियन आर्मी ओलओसी, बोर्डर को प्रोटेक्ट करती है.

दिल्ही में रक्षा मंत्री के साथ राज की बाते..

– आर्मी के सफर के दोरान लेफ्टनन्ट कर्नल देवेन्द्र आनंद ने हमारा पुरा खयाल रखा ईतना ही नहीं, हमे जो चाहिये वो सभी सुविधाए मुहैया कराई. आम तोर पर जहां पर जाने को मिलता नहीं वो सभी जगह पर ले गये.
– उसके बाद पहोंचे दिल्ही जहां पता चला की कैसे तीनो पांखो के उपर रक्षा मंत्रालय काम करता हे. रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह से भी मीले. आखरी दिन रक्षा राज्य मंत्रीने हमे सर्टिफिकेट दीये.
– पुरे कोर्स के दरमियान लेफ्टनन्ट कर्नल हर्षवर्धन पांडे हमारे कोर्स ओफिसर थे. तभी तो उन्होने हमारी अच्छी तरह से खातरदारी की, पर अब तो वो हमारे दोस्त बन चूके हे.

जम्मु-काश्मीर के अखबारो में हमारी खबर

एक महिने के सफर के दोरान जो शीख मीली वो ये हे.
1. तीनो फोर्स जितनी नम्र, प्रोफेशनल, डेडिकेटेड टीम दुनिया में कहीं नहीं मिल शकती.
2. तीनो फोर्स बहुत ही सक्षम हे, मतलब की पूरा देश वेल प्रोटेक्टेड हे.
3. तीनो सेनाओ के पास जो टेकनोलोजि हे, उसकी हम कल्पना भी नहीं कर शकते.
कोर्स के दोरान हमारा ज्ञान तो बढा ही बढा, पर संरक्षण के प्रति जो मान था हो हजारोगुना बढ चुका है.

हमारे कोर्स के बारे में जानकारी देने वाली ओर कुछ लिन्क्स ..

waeaknzw

Gujarati Travel writer.

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *